Let’s Start water vapor is a greenhouse gas
ग्रीन हाउस इफेक्ट
ग्रीन हाउस इपेक्टक्या होता है- यह एक प्राकतिक प्रक्रिया होती है जो कि वातावरण में सूर्य की ऊर्जा को अवशोषित करता है जितनी गर्मी धरती पर जीवन जीने के लिए आवश्यक होती है ।
यह ऐसी प्रक्रिया होती है जिसमें प्रथ्वी प्राक्रतिक रुप से गर्म होती है इस प्रक्रिया में सूर्य की किरणे प्रथ्वी पर पडती हैं जिससे प्रथ्वी गर्म होती है लेकिन कुछ गर्मी प्रथ्वी के अवशोषित करने के बाद प्रथ्वी की सतह पर वापस चली जाती हैं । पृथ्वी की सतह पर वायुमंडल में कुछ मिश्रित गैसे जैसे
- जल वाष्प (वाटर वेपर )
- कार्बन डाइआक्साइड 0.04
- मीथेन
- नाइट्रस आक्साइड
- ओजोन 0.03
जल वाष्प वायुमण्डल में प्राकृतिक रुप से पायी जाती है । कार्बन डाइआक्साइड प्राकृतिक रुप से वायुमण्डल में पायी जाती है जब इंसान और जानवर सांस लेने की प्रक्रिया करतें हैं और पेड पौधे जिन्दा रहने के लिए कार्बन डाइआक्साइड अवशोषित करते हैं । मीथेन गैस जानवरों के खाने से मिलती है और यह गैसे आती उन खेतों से जहां धान की खेती होती है । नाइट्रस आक्साइड पौधौं के बढने और मरनें से पैदा होती हैं । ओजोन प्राकृतिक रुप में पृथ्वी के वायुमण्डल में मौजूद रहतें हैं ।
उपरोक्त गैसे प्राकृतिक रुप से वायुमण्डल मे मौजूद होती हैं जिनकी आवश्यकता पृथ्वी को गर्म रखने के लिए होती है यदि ऐसा नहीं होता है तो पृथ्वी का तापमान -18⁰ हो जाता तो पृथ्वी पर जीवन असंभव हो जाता । लेकिन पृथ्वी का अधिक गर्म होना भी हानिकारक है । पृथ्वी पर गर्मी बढाने का कार्य इंसानों द्वारा होता है जब हम ईधन जलाते हैं जैसे उपले (कंडे), कोयला और लकडी जलाने से जो गैसे निकलती हैं वो वायुमण्डल में जमा हो जाती हैं और पृथ्वी के वायुमण्डल पर गर्मी बढ जाती है जिसके कारण ग्लोबल वार्मिंग होती है । सबसे महत्वपूर्ण गैस होती है जो ग्रीन हाउस इफेक्ट को प्रभावित करती है वो क्लोरोफ्लोरोकार्बन गैस होती है इसकी वजह से ओजोन लेयर में होल हो गया था । जिस वजह से सूर्य की पैराबैंगनी किरणें सीधे धरती पर आनी शुरु हो जाती हैं जिससे स्कीन केंसर का खतरा बढ जाता है ।
उत्सर्जन ग्रीन हाउस गैसे वो होती हैं जो पृथ्वी पर कार्बन डाइ आक्साइड नाइट्रस आक्साइड मीथेन और ओजोन के दवारा उत्सर्जित तरंग दैर्ध्य में अवरक्त विकिरण को अवशोषित तथा उत्सर्जित करती है । ये गैसे जो पृथ्वी के वायुमण्डल का लगभग 0.07% हिस्सा है और एक काफी बढा हिस्सा पानी की वाष्प का है
पृथ्वी के वायुमण्डलीय घटक
जल वाष्प की भूमिका – जल वाष्प ग्रीन हाउस प्रभाव का सबसे बडा प्रतिशत है स्पष्ट आकाश की स्थिति के लिए 36% और 66% के बीच और बादलों सहित 66% और 85% के बीच (20) जल वाष्प सान्द्रता क्षेत्रीय रूप से उतार चढाव करती है । स्थानीय पैमाने को छोडकर सांद्रता परोक्ष रूप से मानव के
निकलकर तापमान को बढाती है । जो जल वाष्प की मात्रा को बढाएगी ।
औघोगिक क्रान्ति (1750) के बाद से मानव गतिविधियों में कार्बन डाइआक्साइड की वायुमण्डलीय सांद्रता को लगभग 50% बढा दिया था । 1750 में 280 ppm से 2021 में 419 हो गया है । 161 पिछली बार की वायुमंडलीय सांद्रता थी विभिन्न प्राकृतिक कार्बनिक सिंको दवारा आधे से अधिक उत्सर्जन के अवशोषण के बावजूद यह वृदि हुई है ।
मीथेन –
तेल और कोयले जैसे जीवाश्म ईधनों के जलाने से भी ग्रीनहाउस प्रभाव में महत्वपूर्ण योगदान रहता है । कोयले , कंडे , लकडी के जलाने से भी वायुमण्डल में कार्बनडाइ आक्साइड का उत्सर्जन होता है जो कि वायुमण्ल को प्रदूषित करती है इसके अलावा गैस और कोयले के खदानों से तथा गैस के कुओं से भी मीथेन गैस का उत्सर्जन होता है । धान की खेत , दलदली भूमि तथा अन्य प्रकार की नम भूमियां मीथेन गैस के उत्सर्जन के प्रमुख स्रोत हैं । इसके अतिरिक्त 6% कोयला खनन मीथेन की वृद्धि का कारण है । पशुओं का चारा , तथा दीमकों के आंतरिक किण्डवन भी मीथेन उत्सर्जन के स्रोत हैं । वर्ष 1750 की तुलना में मीथेन की मात्रा 150 की वृद्धि हुई है । 2050 तक मीथेन एक हरित गृह गैस हो जाएगी । पालतू जीवों जैसे गाय बकरी भेङ सुअर जैसे पालतू जीव का भी ग्रीन हाउस गैस के उत्सर्जन में काफी योगदान रहता है जब इन जीवों द्वारा अपना भोजन पचाया जाता है तब इनके पेट में मीथेन गैस बनती है जो कि इनके गोबर करने पर वायुमंडल में मिल जाती है ।
नाइट्रस आक्साइड –
रासायनिक खादों के कृषि में अधिक उपयोग करने से इस गैस के उत्सर्जन का प्रमुख कारण है । जीवाश्म ईधन भी इस गैस के उत्सर्जन में प्रमुख भूमिका निभाते हैं । रासायनिक खादों के कारण नाइट्रस आक्साइड का उत्सर्जन प्रत्येक वर्ष काफी मात्रा मे बढ रहा है । वातावरण में इस गैस की वृद्धि के लिए 70 से 80% तक रासायनिक खाद जिम्मेदार होती है ।
क्लोरोफ्लोरोकार्बन्स- यह रसायन भी हरित गृह प्रभाव के लिए उत्तरदायी होता है । यह सीधा उपरी सतह पर प्रभाव डालती है इसकी वजह से सूर्य की अल्ट्रावायलेट किरणे सीधे पृथ्वी पर आनी शुरू हो जाती है । सी एफ सी एस रसायन का इस्तेमाल आमतौर पर ए.सी , फ्रिज , तथा ठोस प्लास्टिक झाग के रूप में होता है । इस समूह के रसायन वातावरण में काफी स्थायी होते हैं । यह इंसानो के द्वारा बनायी गयी सिंथेटिक औधोगिक में रसायन कमपाउंड जैसे क्लोरीन , फ्लोरीन , और कार्बन अणु एकत्र होते हैं । एसी , फ्रिज , क्लिनिंग एजेंट , आग बुझाने वाले तरल पदार्थ , स्प्रे केन्स इन सब चीजों की सब जगह काफी डिमांड है ।इन सब के ज्यादा उपयोग से सी एफ एस मोलीक्यूलस वायुमण्डल में फैल जाते हैं और ये काफी लम्बे समय तक वायुमण्डल में स्थिर रहते हैं ।
ग्रीन हाउस गैसों को कम करना -इन गैसों के प्रभाव को कम करने के लिए ज्यादा से ज्यादा वृक्ष लगाने चाहिए ताकि वायु मण्जल में आक्सीजन की कमी ना रहे । पौधों को लगाने से प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया द्वारा कार्बन डाइ आक्साइड गैस को अवशोषित कर लेती है और ज्यादा मात्रा में आक्सीजन रिलीज होती है ।
सौर उर्जा का उपयोग – सौर उर्जा वाले उपकरण प्रयोग में लाने चाहिए जैसे वाटर पम्प जो सिंचाई के काम आती है , सौलर वाटर हीटर जो कि पानी को गर्म करने के काम आती है , सौलर लाइट भी काफी उपयोगी होती है इनका उपयोग करने से हम काफी मात्रा मे इल्कट्रीसीटी को बचा सकते हैं और इनसे निकलने वाली गैसों से अपने वातावरण को बचा सकते हैं ।
वाहनों का उपयोग –कम से कम वाहनों को चलाना चाहिए जिससे ईघन की बचत होगी और वातावरण को ईधन से निकलने वाली गैसों से कम नुकसान होगा ।
रीयूज और रीसाइकिल – घरों मे प्रयोग होने वाले सामान ऐसे होने चाहिए कि जिनको हम दोबारा प्रयोग कर सकें इससे हम काफी मात्रा में कार्बन डाइ आक्साइड के दुष्प्रभाव से बच सकते हैं ।
थर्मल पावर प्लांट को चलाने के लिए जो कोयले का प्रयोग किया जाता है वह भी जिम्मेदार है ग्रीन हाउस गैस को बढाने में , इसलिए हमें कम मात्रा में बिजली का उपयोग करना चाहिए ।
ग्रीन हाउस गैस के फायदे – यह हमारे लिए एक जरुरत है बिना ग्रीन हाउस गैस के पृथ्वी पर जीवन सम्भव नही है इनके बिना पृथ्वी का तापमान गर्म नहीं होगा । इन गैस के बिना धरती ठंडी हो जायेगी और पृथ्वी पर जीवन असम्भव हो जयेगा ।
इनकी आवश्यकता प्रकाश शंसलेषण में भी होती है जिससे वाष्पीकरण होता है बादल बनते हैं और बारिश होती है ।
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